( तर्ज - अजि ! कौन जगा जगनेकी है ० )
नर ! साध प्रभू - पद सुखदायी ,
यह भरम हटा दिलका भाई ! ॥टेक ॥
जब गजराज खचीटा ग्रहने ,
बि प्रभु - स्मरण किया गजहूने ।
प्रभु दौरे एक पलमाँही ,
यह भरम ० ॥ १ ॥
द्रौपदिने जब नाम पुकारा ,
वस्त्र दिये हरिने , दुख वारा ।
निर्भय पद धृवने पाई ,
यह भरम ० ॥ २ ॥
भक्त सुदामा चावल दीन्हे ,
कंचनधाम हरीने कीन्हे ।
बिपत निभायी यदुराई ,
यह भरम ० ।।३ ।।
तुकड्यादास कहे क्यों भूला ?
नाहक भ्रमता विषय अकेला ।
निर्मल सुख उसमें नाहीं ,
यह भरम ० ॥ ४ ॥
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा